समंक संकलन क्या हैं ,प्राथमिक एवं द्वितीय समंक संकलन की विधियाँ

समंक का अर्थ

तथ्यों का वह समूह जिन्हें संख्या में व्यक्त किया जा सके ,जिसे शुद्धता के उचित स्तर द्वारा गिना या अनुमानित किया जा सके,संमक संकलन कहलाता हैं ।

प्राथमिक समंक

प्राथमिक समंक अन्वेषण द्वारा विभिन्न विधियों के प्रयोग से स्वयं संकलित किए जाते हैं ।इस प्रकार समंक अपरिष्कृत रूप में होते हैं जिनका उपयोग करने से पहले परिष्करण आवश्यक होता है । उदाहरण के लिए जनगणना

द्वितीयक समंक

समंक जो पूर्व में किसी अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा संकलित किए गए हो, और जो प्रकाशित किया जा चुके हो द्वितीयक समंक कहलाते हैं ,अनुसंधानकर्ता केवल इनका उपयोग करता है इसमें परिष्करण की नगण्य आवश्यकता होती है।

Table Of Contents
  1. समंक का अर्थ
  2. प्राथमिक समंक
  3. द्वितीयक समंक
  4. प्राथमिक समंक संकलन की विधियाँ
  5. द्वितीय समंक
  6. सारांश
समंक संकलन क्या हैं ,प्राथमिक एवं द्वितीय समंक संकलन की विधियाँ

प्राथमिक समंक संकलन की विधियाँ

  • प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि
  • अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान विधि
  • सूचकों द्वारा प्रश्नावली भरवा कर
  • संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्त कर
  • प्रगणको को द्वारा सूची भरवा कर
  • पंजीकरण विधि द्वारा

1. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि 

इस विधि के अंतर्गत अनुसंधानकर्ता स्वयं अपनी योजना के अनुसार पूरे क्षेत्र में जाकर विभिन्न सांख्यिकी इकाइयों से संपर्क स्थापित कर समंक एकत्रित करता है। इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग यूरोपिय विद्वान “ली प्ले” द्वारा किया गया था। और भारत में “आर्थर यंग “द्वारा इस विधि का अनुसरण किया गया था। उदाहरण- जनगणना

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि की उपयोगिता

  • इस विधि का प्रयोग उसे क्षेत्र में  किया जाना चाहिए ,जहां अनुसंधान क्षेत्र सीमित तथा स्थानीय प्रकृति हो ।
  • जहां मौलिक समंक( ओरिजिनल) की आवश्यकता हो
  • जहां समंक शुद्धता की अधिक आवश्यकता हो
  • जब समंको की गोपनीयता रखनी हो

 प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि के गुण

  • प्राप्त समंक शुद्ध होते हैं।
  • समंक अधिक विश्वसनीय होते हैं ।
  • समंको में मौलिकता पाई जाती है ।
  • समंको में एकरूपता सजातीयता पाई जाती है
  • अन्य सहायक सूचना भी प्राप्त हो जाती है
  •  अनुसंधानकर्ता को समंको की जांच का अवसर मिल जाता है

 प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि के गुण दोष

  • इसका उपयोग सीमित क्षेत्र के लिए होता है ,यह विस्तृत क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त है।
  • इसविधि में  पक्षपातकी संभावना अधिक है।
  • यह विधि अपव्ययी है इसमें धन समय तथा श्रम का अधिक लगता है
  • सीमित क्षेत्र पर लागू होने पर निष्कर्ष भ्रामक हो सकते हैं ‌

 2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान विधि

इस विधि मे सूचको से प्रत्यक्ष रूप से समंक प्राप्त न करके उन व्यक्तियों से प्राप्त किया जाता है ,जिसका उन समंको से अप्रत्यक्ष संबंध होता है, इन व्यक्तियों को साक्षी कहते हैं इस विधि का सर्वाधिक उपयोग जॉच समिति,व आयोग द्वारा किया जाता है।

अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान विधि की उपयोगिता

  • जहां अनुसंधान का क्षेत्र विस्तृत हो
  • जहां सूचकों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित न हो
  • जहां सूचक संबंधित सूचना, देना ना चाहते हो
  • जहां अनुसंधान को गोपनीय रखा जाए

अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान के गुण

  • इस विधि में विशेषज्ञों की सहमति एवं सुझाव मिल जाते हैं।
  • इस विधि में व्यक्तिगत पक्षपात की संभावना नहीं रहती है
  • इस यह विधि मितव्ययी है,धन समय तथा परिश्रम कम खर्च होता है
  • विधि के द्वारा अपेक्षाकृत जल्दी निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं

अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान के दोष

  • इस विधि में उच्च शुद्धता का अभाव होता है
  • इस विधि में सूचनाओं में त्रुटियां तथा अविश्वास की संभावना बनी रहती है
  • प्राय सूचना लापरवाही तथा अनिच्छा से दी जाती है
  • समंको में एकरूपता नहीं रहती।

 3.स्थानीय स्रोतों या संवाद द्वारा सूचना प्राप्ति

इस विधि के अनुसार अनुसंधान से संबंधित सामग्री एकत्रित करने के लिए स्थानीय व्यक्ति नियुक्त किए जाते हैं जो अपने ढंग से सूचना एकत्रित करते और बाद में अनुसंधान कर्ता के पास भेज देते हैं समाचार पत्रों और पत्रिकाओं द्वारा इसी विधि को अपनाया जाता है।

इस विधि की उपयोगिता

इस विधि का उपयोग उसे क्षेत्र में किया जाता है जहां शुद्धता की आवश्यकता ना हो केवल अनुमान या प्रवृत्तियां ज्ञात करनी हो।

इस विधि के गुण

  • अधिक विस्तृत क्षेत्र के लिए यह प्रणाली अधिक उपयोगी है
  • यह प्रणाली मितव्ययी होती है । इस विधि में धन समय और श्रम की बचत होती है।
  • यह विधि अन्य विधाओं से अपेक्षाकृत सरल होती है।

इस विधि के दोष

  • इस विधि में निष्कर्ष संवाददाताओं के पक्षपात से प्रभावित हो सकता है
  • निर्णय अनुमान पर आधारित होते हैं जिसके कारण निष्कर्ष शुद्धता से दूर होते हैं
  • एकत्रित समंको को में एकरूपता व सजातीयता का अभाव बना रहता है
  • संकलित  समंको में मौलिकता का अभाव बना रहता हैं

4. सूचनाओं द्वारा अनुसूचियां या प्रश्नावली भरवा कर  

इस विधि में अनुसंधान करता द्वारा एक प्रश्नावली अनुसूचित तैयार तैयार की जाती है और संबंधित व्यक्तियों के पास डाक या मेल के द्वारा भिजवा दी जाती है इस प्रश्नावली के साथ एक अनुरोध पत्र भी होता है जिसका उद्देश्य सूचना देने वाले व्यक्ति का सहयोग प्राप्त करना होता है । सूचना देने वाला व्यक्ति उसे प्रश्नावली को उत्तर सहित अनुसंधानकर्ता के पास वापस भेज देता है

इस विधि की उपयोगिता

– इस विधि का उपयोग अधिकतर उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां की जनसंख्या अधिक शिक्षित हो और प्रश्नावली भरवा कर जानकारी देने में समर्थ हो और साथ ही जहां अनुसंधान का क्षेत्र अधिक व्यापक हो उसे समय या विधि अधिक उपयोगी साबित होती है

इस विधि के गुण

  • यह प्रणाली विस्तृत क्षेत्र के लिए अधिक उपयुक्त साबित होती है
  • यह विधि मितव्ययी है इसमें धन श्रम समय एवं परिश्रम की बचत होती है
  • इस विधि में अशुद्धि की संभावना कम होतीहै
  • प्राप्त सूचनाए  मौलिक एवं निष्पक्ष होती है

इस विधि के दोष

  • सूचना देने वाले व्यक्ति की प्राय रुचि नहीं होती ,अधिकतर सूचनाए नहीं मिलती या अपूर्ण होती है
  • प्रश्नावली जटिल होने पर उत्तर अशुद्ध प्राप्त होते हैं
  • कभी-कभी सूचनाक् देने वाले इस बात से डरते हैं कि कहीं उन सूचनाओं का दुरुपयोग ना हो
  • यह प्रणाली लोचदार नहीं है

5. प्रगणको द्वारा अनुसूचियाँ भरवाना

-इस विधि में प्रश्नावली अथवा अनुसूचियां को भरने का कार्य प्रशिक्षित प्रगणकों को सौप जाता है, प्रगणको को  छपी हुई अनुसूचियां दे दी जाती है,  वे सूचको से  स्वयं पूछताछ करके उन प्रश्नावली को स्वयं भरते हैं इस प्रणाली की सफलता पूर्णता प्रगणकों पर निर्भर करती है अतः प्रगणको   को योग्य चतुर और परिश्रमी व्यवहार कुशल संबंधित क्षेत्र में परिचित होना अति आवश्यक है।

इस विधि की उपयोगिता- जब अनुसंधानर्कता अधिक व्यय  कर सकता है और उसे विस्तृत जानकारी की आवश्यकता होती है तब इस विधि का उपयोग किया जाता है अधिकांशतःसरकारी कार्यों में इस विधि का उपयोग किया जाता है। उदाहरण- भारत में जनगणना

इस विधि के गुण

  • इस विधि द्वारा व्यापक क्षेत्र मे सूचना प्राप्त की जा सकती है
  • व्यक्तिगत संपर्क स्थापित किये जा सकने के कारण जटिल प्रश्नों के विश्वसनीय उत्तर प्राप्त हो जाते हैं
  • संकलित समंको में पर्याप्त शुद्धता रहती है
  • व्यक्तिगत पक्षपात का विशेष प्रभाव नहीं रहता है

इस विधि के दोष

  • यह विधि अधिक खर्चीली होती है इसमें प्रगणकों के प्रशिक्षण पर अधिक वव्य होता है
  • इस विधि में अनुसंधान कार्य में अधिक समय लगता है
  • इस विधि में प्रगणकों को प्रशिक्षण देना व उनके कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण करना पड़ता है
  •  प्रगणको मे पक्षपात की भावना होने पर निष्कर्ष अविश्वसनीय हो सकता है
उद्यमिता की अवधारणाएँ औhttps://gyanvarnan.com/%e0%a4%89%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%89%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%a4/र परिभाषा
समंक संकलन क्या हैं ,प्राथमिक एवं द्वितीय समंक संकलन की विधियाँ

द्वितीय समंक

द्वितीयक समंक वे आंकड़े होते हैं जिन्हें किसी दूसरे व्यक्ति , संस्था या अनुसंधानकर्ता द्वारा दोबारा प्रयोग में लाया जाता है जबकि वे समंक किसी विशिष्ट उद्देश्य हेतु पहले ही प्रयोग में लिए जा चुके हैं।

ऐसे समंको के संकलन के लिए दो प्रकार के स्रोत होते हैं

प्रकाशित स्त्रोत

ऐसे समंक जिन्हें  सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं ने विभिन्न उद्देश्यों हेतु एकत्रित करने के बाद प्रकाशित किया हो उदाहरण -राष्ट्रीय आय, जनगणना ,आर्थिक सर्वेक्षण, शिक्षा स्वास्थ्य संबंधित आंकड़े विश्व बैंक की रिपोर्ट अनुसंधान आदि

अप्रकाशित स्त्रोत

अनेक अनुसंधानकर्ता विभिन्न उद्देश्यों के लिए समंको का संकलन करते हैं, जो अनेक करणो से प्रकाशित नहीं कर पाते जो दफ्तरों में फाइलों में,प्रलेखों,रजिस्टर आदि में उपलब्ध होते हैं यह अप्रकाशित समंक कहलाते हैं इन्हें प्राय निजी प्रयोग हेतु एकत्रित किया जाता है

द्वितीय समंकों के उपयोग में लेने से पूर्व सावधानियाँ

  • समंको को संकलित करने वाले व्यक्ति या संस्था की योग्यता का की जानकारी होना।
  • उपयोग से पूर्व यह देख लिया जाए कि यह वर्तमान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पर्याप्त है या नहीं
  • समंको को छांटकर उसकी  विश्वसनीयता की परख की जाए
  • किस विधि से समंको को एकत्रित किया गया है, उसकी जांच या जानकारी होना भी आवश्यक है

सारांश

समंक परिणात्मक सूचना होती हैं तथा इसका प्रतिदर्श प्राथमिक या द्वितीयक समंक के रूप में किया जा सकता हैं। किसी भी अन्वेषण के संचालन मे संमको की आवश्यकता होती हैं जो की प्राथमिक या द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त किए जाते हैं इन दोनों के लिए साख्यिकी सर्वेक्षण की आवश्यकता होती हैं ।


विभिन्न सर्वेक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए

1.प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि
२. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान विधि
3.सूचकों द्वारा प्रश्नावली भरवा कर
4.संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्त कर
5.प्रगणको को द्वारा सूची भरवा कर
6.पंजीकरण विधि द्वारा


द्वितीयक समंक ,प्राथमिक समंक से क्यों श्रेष्ट होते हैं

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